सोलन का इतिहास History of solan
इतिहास - सोलन (solan history) जिला शिमला पहाड़ी की रियासतों का हिस्सा है जिनमें बाघल - 120 वर्ग मील , महलोग - 49 वर्ग मील ,बघाट - 33 वर्ग मील , कुठाड़ - 21 वर्ग मील , मांगल - 14 वर्ग मील , कुनिहार - 7 वर्ग मील और बेजा - 5 वर्ग मील शामिल है । इन 7 रियासतों को मिलाकर 15 अप्रैल , 1948 ई . में सोलन और अर्की तहसील का गठन किया गया जो कि महासू जिले की तहसीलें थी। इन 7 पहाड़ी रियासतों के अलावा हण्डूर ( नालागढ़ ) - 276 वर्ग मील रियासत को 1966 ई . में हि . प्र . में ( शिमला की तहसील के रूप में और 1972 ई . में सोलन जिले में ) मिलाया गया । हण्डूर रियासत को छोड़कर बाकी सभी 7 रियासतें 1790 ई . तक बिलासपर रियासत को वार्षिक लगान देती थीं । मांगल रियासत तो 1790 ई . के बाद भी वार्षिक लगान बिलासपुर राज्य को देती रही ।
सोलन की रियासत princely states of solan
1 . बघाट रियासत - सोलन शहर और कसौली, बघाट रियासत का हिस्सा थे । बघाट का अर्थ है ' बहु घाट अर्थात् ' बहुत से दर्रे / घाट ' ।
स्थापना - बघाट रियासत की स्थापना धारना गिरी ( दक्षिण भारत ) से आये पवार राजपूत ' बसंत पाल ' ( हरिचंद पाल ) ने की थी । राणा इंदरपाल ने रियासत का नाम बघाट रखा । बघाट रियासत बिलासपुर से 1790 ई . में स्वतंत्र हुई । राणा महेन्द्र सिंह बघाट रियासत का पहला स्वतंत्र शासक बना ।
ब्रिटिश - राणा महेन्द्र सिंह की 1839 ई . में बिना किसी संतान की मृत्यु हो गई जिसके बाद रियासत ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण में आ गई ।
राणा महेन्द्र सिंह के बाद राणा विजय सिंह बघाट का शासक बना । 1849 ई . में विजय सिंह की मृत्यु के बाद(बिना किसी पुत्र के ) बघाट रियासत लार्ड डलहौजी की लैप्स की नीति के तहत अंग्रेजों के अधीन आ गई । राणा उम्मेद सिंह को वर्ष बाद ) गदी प्राप्त हई जब वह मृत्यु शैय्या पर थे । उम्मेद सिंह के बाद राणा दलीप सिंह ( 1862 - 1911 ई . ) गददी पर बैठे। बघाट रियासत की राजधानी बोछ से सोलन बदली ।
दुर्गा सिंह - राणा दिलीप सिंह की मृत्यु ( 1911 ई . ) के बाद राणा दुर्गा सिंह ( 1911 - 1948 ) बघाट रियासत के अंतिम शासक थे । सोलन ( बघाट ) के दरबार हाल में 26 जनवरी , 1948 ई . को ' हिमाचल प्रदेश का नामकरण किया गया जिसकी अध्यक्षता राजा दुर्गा सिंह ने की ।
• स्थिति - बाघल रियासत के उत्तर में मांगल , पूर्व में धामी और कुनिहार , पश्चिम में हण्डूर ( नालागढ़ ) तथा दक्षिण में अम्बाला स्थित था ।
स्थापना - बाघल रियासत की स्थापना उज्जैन के पवार राजपूत अजयदेव ने की । बाघल रियासत गम्भर नदी के आसपास स्थित था । बाघल रियासत की राजधानी सैरी , ढूंडन , डुगली और डारला रही ।
राणा सभाचंद - राणा सभाचंद ने 1643 ई . में अर्की को बाघल रियासत की राजधानी बनाया । इन्हें बाघल रियासत का पहला शासक माना जाता है । अर्की शहर राणा सभाचंद ने स्थापित किया ।
गोरखा आक्रमण - राणा जगत सिंह ( 1778 ई . - 1828 ई . ) के शासनकाल में गोरखा आक्रमण हुआ । बाघल रियासत ( 1803 ई . से 1815 ई . तक गोरखों के नियंत्रण में रही ) अर्की गोरखों का मुख्यालय रहा । राणा जगत सिंह ने 7 वर्षों तक नालागढ़ रियासत में शरण ली । ब्रिटिश सरकार ने 1815 ई . में बाघल रियासत से गोरखों का नियंत्रण हटाया । संसारचंद के पुत्र अनिरुद्ध चंद ने सिक्ख युद्ध के भय से राणा जगत सिंह के पुत्र के यहाँ शरण ली ।
ब्रिटिश सरकार - 1857 ई . के विद्रोह में राणा किशन सिंह ( 1840 - 1876 ई . ) ने अंग्रेजों की सहायता की । अंग्रेजों ने किशन सिंह को 1860 ई . में ' राजा ' का खिताब दिया । बाघल रियासत के अंतिम शासक राजेन्द्र सिंह थे । बाघल रियासत के जगतगढ़ दुर्ग का आधुनिक नाम ' जतोग ' ( शिमला ) है ।
कुनिहार रियासत,कुठाड़ रियासत ,महलोग रियासत,की स्थापना कब और किसने की थी?
3 . कुनिहार रियासत - कुनिहार रियासत की स्थापना जम्मू ( अखनूर ) से आए अभोज देव ने 1154 ई . में की । कुनिहार रियासत की राजधानी हाटकोटी थी । गोरखा युद्ध के समय मगन देव रियासत के शासक थे । गोरखों के जाने के बाद ठाकुर मुंगरी दास रियासत के शासक बने । राव हरदेव सिंह कुनिहार के अंतिम शासक थे । _ _ _
4 . कुठाड़ रियासत - कुठाड़ रियासत की स्थापना किश्तवार
( कश्मीर ) से आये सूरतचंद ने की 1815 ई . से पूर्व कुठाड़ हण्डूर और बिलासपुर की जागीर रही । गोरखा आक्रमण के समय कुठाड़ रियासत क्योंथल की जागीर थी । उस समय कुठार का शासक गोपाल चंद था जिसने गोरखा आक्रमण के समय मनीमाजरा में शरण ली । ब्रिटिश सरकार ने 1815 ई . में कुठाड़ को गोरखा नियंत्रण से मुक्त करवाकर राणा भूप सिंह को सनद ( 1815 ई . में ) प्रदान की । क्योंथल का हिस्सा रहे सबाथू को बाद में कुठाड़ रियासत में मिला दिया गया । सबाथू किले का निर्माण गोरखों ने करवाया जिसमें 1816 ई . में ब्रिटिश सरकार ने पहली सैन्य चौकी स्थापित की ।
5 . महलोग रियासत - महलोग रियासत की स्थापना अयोध्या से आये वीरचंद ने की थी । वीरचंद शुरू में पट्टा गाँव में रहने लगे और उसे अपनी राजधानी बनाया । उत्तम चंद ने सिरमौर के राजा से हारने के बाद महलोग रियासत की राजधानी 1612 ई . में ' कोट धारसी ' में स्थानांतरित की । महलोग क्योंथल रियासत की जागीर थी ।
*गोरखा आक्रमण - महलोग रियासत 1803 ई . से 1815 ई . तक गोरखों के नियंत्रण में रही । इस दौरान महलोग के शासक ठाकुर सतारचद ने हण्डूर के राजा रामशरण के यहाँ शरण ली । ब्रिटिश सरकार ने 1815 ई . में महलोग को गोरखा आक्रान्ताओं से स्वतंत्रता दिलाई और स्वतंत्र सनद ( 4 सि . 1815 ई . ) प्रदान की । - ठाकुर संसार चंद की 1849 ई . में मृत्यु के बाद दलीप चंद ( 1849 - 1880 ) गद्दी पर बैठे । रघुनाथ चंद का राणा " का खिताब प्रदान किया । रघुनाथ चंद के पुत्र दुर्गा सिंह को ( 1902 ई . में ) ब्रिटिश सरकार ने ' ठाकुर ' ताव प्रदान किया । महलोग रियासत के अंतिम शासक " ठाकुर नरेन्द्र चंद " थे । ब्रिटिश सरव का खिताब
* ब्रिटिश नियंत्रण - ठाकुर संसार चंद की 1849 ई . में मृत्यु के बाद दलीप चंद ( 1849 - 1880 ) गद्दी पर बैठे । रघुनाथ चंद को ब्रिटिश सरकार ने “ राणा " का खिताब प्रदान किया । रघुनाथ चंद के पुत्र दुर्गा सिंह को ( 1902 ई . में ) ब्रिटिश सरकार ने ' ठाकुर ' का खिताब प्रदान किया । महलोग रियासत के अंतिम शासक " ठाकुर नरेन्द्र चंद " थे ।
6 . बेजा रियासत - बेजा रियासत की स्थापना दिल्ली के तँवर राजा ढोलचंद ने की जबकि दूसरी जनश्रुति के अनुसार बेजा रियासत की स्थापना ढोलचंद के 43वें वंशज गर्वचंद ने की । बेजा रियासत बिलासपुर ( कहलूर ) के अधीन थी । 1790 ई . में हण्डूर द्वारा कहलूर को हराने के बाद बेजा रियासत स्वतंत्र हो गई ।
* गोरखा आक्रमण - गोरखा आक्रमण के समय मानचंद बेजा रियासत के मुखिया थे । 1815 ई . में बेजा से गोरखा नियंत्रण हटने के बाद ठाकुर मानचंद को शासन सौंपा गया । उन्हें अंग्रेजों ने “ ठाकुर " का खिताब दिया।
• लक्ष्मीचंद बेजा रियासत के अंतिम शासक थे । बेजा को सोलन तहसील में 15 अप्रैल , 1948 ई . को मिला दिया गया ।
7 . मांगल रियासत - मागल रियासत की स्थापना मारवाढ राजसथान से आये अन्नी राजपूत ने की।मंगल बिलासपुर रियासत की जागीर थी।मांगल रियासत का नाम मंगल सिंह के 1240 में पड़ा।
ब्रिटिश नियंत्रण - 1815 ई . में गोरखा नियंत्रण से मुक्ति के बाद ब्रिटिश सरकार ने ' राणा बहादुर सिंह ' को स्वतंत्र सनद प्रदान की । राणा शिव सिंह मांगल के अंतिम शासक थे ।
*मांगल रियासत को 15 अप्रैल , 1948 ई . को अर्की तहसील में मिला दिया गया ।
हण्डूर रियासत ( नालागढ़ का इतिहास )
. स्थापना - हण्डूर रियासत की स्थापना 1100 ई . के आसपास अजय चंद ने की थी जो कहलूर के राजा कहालचंद का बड़ा बेटा था । हण्डूर रियासत कहलूर रियासत की प्रशाखा थी । • तैमूर आक्रमण - 1398 ई . में तैमूर लंग ने भारत पर आक्रमण किया । उस समय हण्डूर रियासत का राजा आलमचंद ( 1356 - 1406 ) था । आलमचंद ने तैमूर लंग की मदद की थी जिसके बदले तैमूर लंग ने उसके राज्य को हानि नहीं पहुँचाई ।
• ( विक्रमचंद ( 1421 - 1435 ई . ) ने नालागढ़ शहर की स्थापना की । विक्रमचंद ने नालागढ़ को हण्डूर रियासत की राजधानी बनाया ।
• रामचंद ( 1522 - 68 ई . ) - रामचंद ने “ रामगढ़ " का किला बनाया । रामचंद ने रामशहर को अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया । '
राजा अजमेर चंद ( 1712 - 41 ई . ) - ने अजमेर गढ़ का किला बनवाया ।
राजा रामशरण ( 1788 - 1848 ई . ) - राजा रामशरण ने संसारचंद का साथ दिया था । उन्होंने 1790 ई . में कहलूर रियासत को हराकर फतेहपुर , रतनपुर और बहादुरपुर किले छीन लिए थे । गोरखा आक्रमण के समय राजा रामशरण को 3 वर्षों तक राम शहर किले में छिपना पड़ा । 1804 ई . में गोरखों ने रामशहर पर कब्जा कर लिया । राजा रामशरण ससारचद मित्र था । राजा रामशरण ने पलासी के किले ( होशियारपुर ) में 10 वर्षों तक शरण ली । राजा रामशण के समय ।
हण्डूर में पहाड़ी ( काँगड़ा ) चित्रकला का विकास हुआ । राजा रामशरण ने डेविड ऑक्टरलोनी के साथ मिलकर हण्डूर से 1814 ई . में गोरखा आक्रान्ताओं को निकाला । गोरखा सेनापति अमरसिंह थापा ने हण्डूर रियासत के मलौण किले में 15 मई , 1815 ई . को आत्मसमर्पण किया । राजा रामशरण की 1848 ई . में मृत्यु हो गई । राजा रामशरण के बाद राजा विजे सिंह ( 1848 - 1857 ) राजा बने ।
ब्रिटिश - अंग्रेजों ने 1857 ई . से 1860 ई . तक नालागढ़ को अपने नियंत्रण में ले लिया । 1860 ई . में अगरसिंह , 1878 ई . में ईश्वरी सिंह राजा बने । राजा सुरेन्द्र सिंह के शासनकाल में नालागढ़ को पेप्सू ( पंजाब ) में मिला दिया गया । नालागढ़ को 1966 ई . में हि . प्र . में मिलाया गया जो 1972 ई . में सोलन जिले का हिस्सा बना!
अर्थव्यवस्था - सोलन में 1961 - 62 , बरोटीवाला में 1964 - 65 आर परवाणू में 1975 में औद्योगिक एस्टेट स्थापित गए । परवाणू में HPMPC की प्रोसेसिंग इकाई है । नालागढ में दो में HPMPC की प्रोसेसिंग इकाई है । नालागढ़ में डोलोमाइट , कुठार माजप्सम और दाड़लाघाट में लाइम स्टोन ( चना पत्थर ) के भण्डार हैं । मोहन मिकिंग ब्रुअरी की 1855 ई . में स्थापना की गई । बद्दी हि . प्र . का खुम्भ नगरी ( मशरूम सिटी ) के नाम से भी जाना जाता है । यहाँ पर राष्ट्रीय मशरूम अनुसंधान संर सीमेण्ट फैक्ट्ररी है । '
सोलन जिले का गठन establishment of solan
जिले का गठन - 15 अप्रैल , 1948 ई . को बघाट , बाघल , कुनिहार , महल और अर्की तहसील के रूप में ) महासू जिले का हिस्सा थे जबकि नालागढ़ रियास हिस्सा था । नालागढ़ अम्बाला जिले की तहसील थी । नालागढ़ और कण्डाघाट को ई . में हि . प्र . में मिलाया गया । नालागढ़ , कण्डाघाट , अकी , सोलन को मिलाकर किया गया ।सोलन का अनीस विला सलमान रूश्दी का घर है बद्दी हि . प्र . का सबसे बड़ा औद्योगिक शहर है । सोलन पर राष्ट्रीय मशरूम अनुसंधान संस्थान है । दाड़लाघाट में अम्बुजा बाघल , कुनिहार , महलोग , कुठाड़ बेजा और मांगल रियासतें ( सोलन बकि नालागढ़ रियासत पप्सू ( पाटयाला और पूर्वी पंजाब राज्य संघ ) का ण्डाघाट को शिमला जिले के हिस्से के रूप में 1 नवम्बर , 1966 को मिलाकर 1 सितम्बर , 1972 ई . को सोलन जिले का निर्माण किया गया।
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