सिरमौर का नाम करण, स्थापना , ओर सिरमौर के राजा तथा उनका शासन के बारे में जानकारी दूंगा।
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तो चलिए शुरू करते है।
1.सिरमौर का इतिहास History of sirmour
1 . सिरमोर का नाम करण - सिरमौर के प्राचीन निवासी कुलिंद थे । कुलिंद राज्य मौर्य साम्राज्य के शीर्ष पर स्थित था। जिस कारण इसे शिरमौर्य की संज्ञा दी गई जो कालांतर में सिरमौर बन गया । अन्य जनश्रुतियों के अनुसार राजा रसालू के पुुुरबज का नाम सिरमौर था , इसलिए राज्य का नाम सिरमौर रखा गया । रियासत की राजधानी का नाम सिरमौर होने के कारण रियासत का नाम सिरमौर पडा। इस क्षेत्र में सिरमोरिया देवता की पूजा की जाती थी जिसके कारण राज्य का नाम सिरमौर रखा गया ।
सिरमौर का अर्थ Meaning of sirmaur
सिरमौर का नाम सिरमौर किउ पड़ा,ऐसा माना जाता है। की पुराने समय मे यंहा पर मोर्या वंश हुआ करता था, उस समय सिरमौर को शीर्मोर्या के नाम से जाना जाता था। चंद्रगुप्त मोर्या का शासन यहां पर भी था। समय के साथ साथ shirmurya को सिरमौर के नाम से जाना गया।
2. सिरमौर की स्थापना origen of sirmour
2 . सिरमौर रियासत की स्थापना - ' तारीख - 2 रियासत सिरमौर रंजोर सिंह की पुस्तक के अनुसार सिरमौर रियासत का नाम सुलोकिना था । इसकी स्थापना 1139 ई . में जैसलमेर के राजा सालवाहन के पुत्र सजा रसालू ने की थी । उसकी राजधानी सिरमौर ताल थी । एक अन्य जनश्रुति के अनुसार राजा मदन सिंह ने जादू टोना करने वाली स्त्री को धोखा देकर गिरी नदी में मरवा दिया । स्त्री के शाप से गिरि नदी के बाढ़ में रियासत वह गई और उसका कोई उत्तराधिकारी जीवित नहीं बचा जिसके बाद जैसलमेर के सालवाहन द्वितीय ने अपने तीसरे पुत्र हंसु ओर उसकी गर्भवती रानी को सिरमौर भेजा । हांसू की रास्ते में मृत्यु के बाद गर्भवती रानी ने सिरमौरी ताल के पोका में पलाश के वृक्ष के नीचे राजकुमार को जन्म दिया जिसका नाम पलासू रखा गया तथा राजवंश का नाम पलासिया कहा जाने लगा 1934 ई . के गजेटीयर ऑफ सिरमौर के अनुसार जैसलमेर के राजा उग्रसेन ( सालवाहन द्वितीय ) हरिद्वार तीर्थयात्रा पर आये । सिरमौर की गद्दी खाली देख उन्होंने अपने पुत्र शोभा रावल ( शुभश प्रकाश ) को रियासत का स्थापना के लिए भेजा । शोभा रावन ( शुभंश प्रकाश ) ने 1195 ई . में राजबन को सिरमौर रियासत की राजधानी वना सिरमौर रियासत की स्थापना की ।
3. सिरमोर के राजा तथा उनका शासन काल king of sirmour
3 . माहे प्रकाश ( 1199 - 1217 ) - शुभंश प्रकाश की 1199 ई . में मृत्यु होने के बाद माहेप्रकाश राजा बने । उनके शासनकाल में सिरमौर की सीमाएँ गढ़वाल , भागीरथी , श्रीनगर और नारायणगढ़ तक फैल गई । उन्होंने भागीरथी नदी के पास " मालदा किलेे" पर कब्जा कर उसका नाम ' माहे देवल ' रखा ।
4 . उदित प्रकाश ( 1217 - 1227 ई . ) - उदित प्रकाश ने 1217 ई . में सिरमौर रियासत की राजधानी राजबन से कालसी में स्थानांतरित की ।
5 . कोल प्रकाश ( 1227 - 1239 ई . ) - कोल प्रकाश ने जुब्बल , बालसन और थरोच को अपने अधीन कर उसे अपनी जागीर बनाया । कोल प्रकाश ने 1235 ई . में रजिया सुल्तान के विरोधी “ निजाम - उल - मुल्क " को शरण दी थी ।
6 . सुमेर प्रकाश ( 1239 - 1248 ई . ) - सुमेर प्रकाश ने क्योंथल की जागीर रतेश को अपने अधीन कर उसे सिरमौर रियासत की राजधानी बनाया ।
7 . सूरज प्रकाश ( 1374 - 1386 ई . ) - सूरजप्रकाश ने जुब्बल , बालसन , कुमारसेन , घुण्ड , सारी , ठियोग , रावी और कोटगड़ को अपने अधीन कर लगान वसूल किया । सूरज प्रकाश ने सिरमौर रियासत की राजधानी रतेश से पुनः कालसी में स्थापित की ।
8 . भक्त प्रकाश ( 1374 - 1386 ई . ) - भक्त प्रकाश फिरोजशाह तुगलक का समकालीन था । भक्त प्रकाश के शासनकाल में 1379 ई में फिरोजशाह तुगलक ने सिरमौर रियासत को अपनी जागीर बनाया ।
9 . वीर प्रकाश ( 1388 - 1398 ई . ) - वीरप्रकाश ने हाटकोटी को अपनी राजधानी बनाया । उन्होंने पब्बर नदी के किनारे भागबत्ती दर्गा का मंदिर बनाया । वीर प्रकाश ने ' रावीनगढ़ किला " बनवाया ।
. सिरमौर की राजधानी का स्थानांतरण कब हुआ?
नेकट प्रकाश ( 1398 - 1414 ई . ) ने रियासत की राजधनी गिरि नदी के तट पर " नेरी गांव" में स्थापित की । गर्वप्रकाश ( 1414 - 1432 ) ने रियासत की राजधानी " नेरी से जोगड़ी किले में स्थानांतरित की । ब्रह्म ( 1432 - 1446 ई . ) ने रियासत की राजधानी पच्छाद के " देवठल " में स्थापित की । धर्मप्रकाश ( 1538 - 1570 ई . ) ने रियासत की राजधानी " देवठल" से बदलकर पुनः कालसी में स्थापित की ।
11 . दीप प्रकाश ( 1570 - 1585 ई . ) - दीप प्रकाश ने सिरमौर के त्रिलोकपुर में 1573 ई . में वाला सुन्दरी का मंदिर बनबाया।
12 , कर्मप्रकाश ( 1616 - 1630 ई . ) - कर्मप्रकाश ने बाबा बनवारी दास के परामर्श से 1621 ई . में सिरमौर रियासत की गाजधानी ' कालसी से नाहन ' स्थानांतरित की । कर्मप्रकाश ने नाहन शहर और नाहन किले की नींव रखी ।
13 . मन्धाता प्रकाश ( 1630 - 1654 ई . ) - मन्धाता प्रकाश शाहजहां का समकालीन था ।
14 . मेदनी प्रकाश ( 1678 - 1694 ) - मेदनी प्रकाश के शासन काल में गुरुगोविंद सिंह नाहन और पाँटा आए । पोंटा साहिब में गुरु गोविंद सिंह 1684 - 1688 ई . तक रहे और भगानी साहिब का युद्ध लड़ा । मेदनी प्रकाश ने नाहन में 1681 ई . में जगन्नाथ मंदिर का निर्माण करवाया ।
15 . जगत प्रकाश ( 1773 ई . - 1792 ई . ) - जगत प्रकाश ने गुलाम कादिर रोहिल्ला को युद्ध में हराने के बाद कटासन देवी का मंदिर 1785 ई . में बनाया ।
16 . धर्म प्रकाश ( 1792 - 1796 ई . ) - सिरमौर के राजा धर्म प्रकाश ने कहलूर के राजा महानचंद की सहायता के लिए संसारचंद और हण्डूर रियासत के विरुद्ध युद्ध लड़ा जिसमें 1796 ई . में उसकी मृत्यु हो गई ।
17 . कर्म प्रकाश ( 1796 ई . - 1815 ई . ) - कर्मप्रकाश के शासनकाल में मेहता प्रेम सिंह बजीर की मृत्यु के बाद रियासत में घरेलू विद्रोह होने लगे । कर्मप्रकाश परिवार के साथ 1803 ई . में क्यारदा दून के " कांगडा किले में रहने लगे । उन्होंने विद्रोह को दबाने के लिए गोरखों को आमंत्रित किया । रंजोर सिंह ( अमर सिंह थापा का पुत्र ) ने 1809 ई . में , सिरमौर रियासत को अपने अधीन कर लिया । रंजोर सिंह ने ' जातक दुर्ग ' का निर्माण करवाया । कर्मप्रकाश अपनी मृत्यु तक अम्बाला के भूरियां में शरण लेकर रहा ।
18 . फतेह प्रकाश ( 1915 - 1850 ई . ) - ब्रिटिश सेना ने जनरल मार्टिन्डेल के नेतृत्व में जातक दुर्ग से गोरखों को 21 मई , 1815 ई . को निकाल दिया । कर्मप्रकाश के बड़े पुत्र फतेह प्रकाश को ब्रिटिश सरकार ने दिसम्बर , 1815 ई . को राजा बनाया । फतेह प्रकाश को 1833 ई . में 50 हजार नजराना देने के बाद ब्रिटिश सरकार ने क्यारदा - दून का इलाका वापस दिया । फतेह प्रकाश ने नाहन में शीशमहल ' और " मोतीमहल " का निर्माण करवाया ।
19 . शमशेर प्रकाश ( 1856 - 1898 ई . ) - शमशेर प्रकाश ने 1857 ई . के विद्रोह में अंग्रेजों का साथ दिया । शमशेर प्रकाश के शासनकाल में 1875 ई . में नाहन फाउड्री , 1867 ई . में रानीताल वाग , 1868 ई में नाहन Municipal कमेटी की स्थापना हुई । 1808 ई . में लार्ड रिपन नाहन आए । जबकि 1885 ई . में लार्ड डफरिन नाहन आए । 1880 ई . में शमशेर प्रकाश ने अपने रहने के लिए शमशेर किला बनवाया । 1878 ई . में शमशेर प्रकाश ने लॉर्ड लिटन के नाहन प्रवास की स्मृति में लिंटन मैमोरियल ( दिल्ली गेट ) बनवाया । शमशेर प्रकाश सबसे लम्बी अवधि तक शासन करने वाले ( 42 वर्ष ) सिरमौर के राजा है । शमशेर प्रकाश के बाद टिक्का सुरेन्द्र विक्रम सिंह ( 1898 - 1911 ) राजा बने ।
20 . अमर प्रकाश ( 1911 - 1933 ई . ) - प्रथम विश्व युद्ध में योगदान के लिए उन्हें ब्रिटिश सरकार ने ' महाराजा ' और ' K . CS . I : ( Knight commander of the order of the star of India ) की उपाधि से अलंकृत किया । अमर प्रकाश ने अपनी पुत्री के नाम पर नाहन में ' महिमा पुस्तकालय ' की स्थापना की जो हि . प्र . का सबसे पुराना पुस्तकालय है । उन्होंने नाहन - काला आम्ब सड़क को 1927 ई . में पक्का करवाया । उनकी मृत्यु आस्ट्रिया की राजधानी वियाना में 1933 ई . में हुई ।
21 . राजेन्द्र प्रकाश ( 1933 - 1948 ई . ) - राजेन्द्र प्रकाश सिरमौर रियासत के अंतिम शासक थे । राजेन्द्र प्रकाश के समय सिरमौर प्रजामण्डल की स्थापना 1937 ई . में और पझोता जांदोलन ( 1942 ई ) हुआ । पझौता आंदोलन में " किशान सभा" का गठन हुआ जिसका सभापति लक्ष्मी सिंह तथा सचिव वैध सूरत सिंह को चुना गया । 13 मार्च , 1948 ई . को महाराज राजेन्द्र प्रकाश ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए । सिरमौर 15 अप्रैल 1948 को हि . प्र . का जिला बना ।
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सिरमौर के इतिहास में इस से बाहर प्रशन नही आएगा।