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कांगड़ा का इतीहास|History of kangra in hindi

HP GK in Hindi|Kangra Full history in hindi| McQ

हालो दोस्तो, इस टॉपिक में आप हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले का सम्पूर्ण  इतिहास के बारे में पढ़ोगे। मुझे उमीद है कि आप को इस साइट पर दी गई सम्पूर्ण जानकारी किसी ओर जगह नही मिलिगी, मेने इस टॉपिक में पूरा इतिहास cover किया है। आप शुरू से अंत तक पड़े। यदि आप किसी सरकारी नॉकरी की तैयारियां कर रहे है तो आपको काफी फायेदा मिलेगा। चलिए शुरू करते है।
 

कांगड़ा का इतीहास, Kangra history in hindi

1. कॉगड़ा रियासत का प्राचीन इतिहास  क्या है?

2 कॉगड़ा रियासत का मध्यकालीन इतिहास, क्या है? महमूद गजनवी का आक्रमण।

3 . काँगड़ा का आधुनिक इतिहास (राजा तथा उनका शासन काल) कब तक था?
4. ससारचंद के आक्रमण और शासन काल कब तक रहा?
5.गुलेर रियासत की स्थापना के हुई?   

Kanhda History full video
1. कांगड़ा का प्राचीन इतिहास (Ancient history of kangda)

1 . कॉगड़ा रियासत का प्राचीन इतिहास - काँगडा प्राचीन काल में त्रिगर्त के नाम से मशहूर था।जिसकी स्थापना महाभारत युद्ध से पूर्व मानी जाती है । इस रियासत की स्थापना भूमिचंद ने की थी जिसकी राजधानी मुल्तान ( पाकिस्तान) थी।इस बंश के  234वें राजा सुशर्मा ने जालंधर /त्रिगर्त के कांगड़ा में किले की स्थापना कर उसको अपनी राजधानी बनाया।

त्रिगर्त का अर्थ - त्रिगर्त का शाब्दिक अर्थ तीन नदियों रावी , व्यास और सतलुज क बीच फैले भू-भाग से है। बाण गंगा , कुराली,और न्यूगल के संगम स्थल को भी त्रिगर्त कहा जाता है ।
जालन्धर - पद्मपुराण और कनिंघम के अनुसार जालंधर नाम दानव जालंधर से लिया गया। जिसको भगवान शिव ने मारा था।
राजधानी - त्रिगर्त रियासत की राजधानी नगरकोट ( वर्तमान काँगड़ा शहर ) थी जिसे भीमकोट, भीम नगर ओर सुषर्मापुर के नाम  से भी जाना जाता था । इस शहर की स्थापना सुशर्मा ने की थी । महमूद गजनवी के उतबी ने अपनी पुस्तक में इसे भीमनगर, फरिश्ता ने  भीमकोट , अलबरूनी ने नगरकोट की संज्ञा दी थी ।


पुस्तकों में विबरण- त्रिगर्त नाम महाभारत, पुराणों ओर राजतरंगिणी में मिलता है।पाणिनी के अष्टध्य में त्रिगर्त को आयुद्धजीबी संघ कहा गया है।

महाभारत काल - महाभारत के युद्ध में सुशर्मा ने कौरवों का पक्ष लिया किया था ।
 कागड़ा का अर्थ - कांगड़ा का अर्थ है कान का गढ़ । भगवान शिव ने जब जालन्धर राक्षस को मारा तो उसके कान जिस जगह गिरे वही स्थान कालांतर में कांगड़ा कहलाया ।

 यूरोपीय यात्री - 1615 ई . में  थामस कोरयाट , 1666 ई . में थेवेनोट , 1783 में फॉस्टर और 1832 ई . में विलियम मूरक्रॉफ्ट ने कांगड़ा की यात्रा की ।
राजतरंगिनी के अनुसार 470 ई . में श्रेष्ठ सेना , 520 ई . में प्रवर सेना ( दोनों कश्मीर के राजा ) ने त्रिगत पर आक्रमण कर उसे जीता था। ह्वेनसांग 635 ई . में कांगड़ा के राजा उतितों ( उदिमा ) के मेहमान बनकर काँगड़ा आये । वह पुनः 643 ई . में काँगड़ा आये । कांगड़ा के राजा पृथ्वीचंद ( 883 - 903 ) ने कश्मीर के राजा शंकरवर्मन के विरुद्ध युद्ध किया था ।

कांगड़ा किला


2 . कांगड़ा का मध्यकालीन इतिहास क्या है ?(Medieval History of Kangra)

महमूद गजनवी ने 1009 ई . में औहिंद के राजा आनंदपाल और उसके पुत्र ब्रह्मपाल को हराकर काँगडा पर आक्रमण किया । उस समय काँगड़ा का राजा जगदीश चंद्र था । काँगड़ा किला 1043 ई . तक तुर्कों के कब्जे में रहा । 1043 ई . में कागड़ा किला तोमर राजाओं ने आजाद करवाया । परन्तु वह 1051 - 52 ई . में पुनः तुर्कों के कब्जे में चला गया । 1060 ई . में कॉगड़ा राजाओं ने पुनः काँगड़ा किले पर कब्जा कर लिया । 1170 ई . में पदमचन्द और पूर्वचन्द ( जसवान राज्य का संस्थापक ) ने काँगड़ा पर राज किया ।

तुगलक - पृथ्वीचंद ( 1330 ई . ) मुहम्मद बिन तुगलक के 1337 ई . के काँगड़ा आक्रमण के समय कांगड़ा का राजा था । रूपचंद ( 1360 ई . ) फिरोजशाह तुगलक के 1365 ई . के आक्रमण के समय कागड़ा का राजा था । रूपचंद का नाम ' मानिकचंद ' के नाटक ' धर्मचन्द्र नाटक ' में भी मिला है जो 1562 ई . के आसपास लिखा गया था । फिरोजशाह तुगलक ज्वालामुखी मंदिर से 1300 पस्तके । फारसी में अनुवाद के लिए ले गया । इन पुस्तकों का फारसी में दलील - ए - फिरोजशाही ' के नाम से अनुवाद ' इज्जुद्दीन खालिदखानी ' ने किया । फिरोजशाह तुगलक के पुत्र नसीरुद्दीन ने 1389 ई . में भागकर नगरकोट पहाड़ियों में शरण ली थी तब काँगड़ा का राजा सागरचंद ( 1375 ई . ) था ।


 तैमूरलंग - काँगड़ा के राजा मेघचंद , ( 1390 ई . ) , के समय 1398 ई . में तैमर लंग ने शिवालिक की पहाड़ियों को लूटा था । वर्ष 1399 ई . में वापसी में तैमूरलंग के हाथों धमेरी ( नूरपुर ) को लूटा गया । हण्ड्र ( नालागढ़ ) के राजा आलमचंद ने तैमूरलंग की मदद की थी ।

 हरिचंद - 1 ( 1405 ई . ) और कर्मचंद - हरिचंद - I एक बार शिकार के लिए हडसर ( गलेर ) गये जहाँ वे अपने सैनिकों से बिछुड़ गये और कई दिनों तक नहीं मिले । उन्हें मरा समझकर उनके भाई कर्मचंद को राजा बना दिया गया । हरिचंद को 21 दिन बाद एक व्यापारी राहगीर ने खोजा । हरिचंद को अपने भाई के राजा बनने का समाचार मिला तो उन्होंने हरिपुर में किला व राजधानी बनाकर गलेर राज्य की स्थापना की । आज भी गुलेर को काँगड़ा के हर त्योहार / उत्सव में प्राथमिकता मिलती है क्योंकि वह काँगड़ा वंश के बड़े भाई द्वारा स्थापित किया गया था । संसारचंद - I कर्मचंद का बेटा था जो 1430 ई . में राजा बना ।

मुगलवंश - धर्मचंद ( 1528 ई . से 1563 ई . ) , मानिक चंद ( 1563 ई . से 1570 ई . ) , जयचंद ( 1570 ई . - 1585 ई . ) और विधिचंद ( 1585 ई . से 1605 ) ई . अकबर के समकालीन राजा थे । राजा जयचंद ( 1570 ई . से 1585 ई . ) को अकबर ने गुलेर के राजा रामचंद की सहायता से बंदी बनाया था । राजा जयचंद के बेटे विधिचंद ने 1572 ई . में अकबर के विरुद्ध विद्रोह किया । अकबर ने हुसैन कुली खान को काँगड़ा पर कब्जा कर राजा बीरबल को देने के लिए भेजा । ' तबाकत - ए - अकबरी ' के अनुसार खानजहाँ ने 1572 ई . में काँगड़ा किले पर कब्जा कर लिया परन्तु हुसैन मिर्जा और मसूद मिर्जा के पंजाब आक्रमण की वजह से उसे इसे छोड़ना पड़ा । अकबर ने टोडरमल को पहाड़ी क्षेत्रों को मापने के लिए भेजा । 1589 ई . में विधिचंद ने पहाड़ी राजाओं से मिलकर विद्रोह किया परन्तु उसे हार मिली । उसे अपने पुत्र त्रिलोकचंद को बंधक के तौर पर मुगल दरबार में रखना पड़ा ।

 आलमचंद ( 1697 ई . से 1700 ई . ) - ने 1697 ई . में सुजानपुर के पास आलमपुर शहर की नींव रखी ।

 हमीरचंद ( 1700 ई . से 1747 ई . ) - आलमचंद के पुत्र हमीरचंद ने हमीरपर में किला बनाकर हमीरपुर शहर की नींव रखी । रसी के कार्यकाल में नवाब सैफअली खान ( 1740 ई . ) काँगड़ा किले का अंतिम मुगल किलेदार बना ।

 राजधानी - 1660 ई . से 1697 ई . तक बीजापुर , 1697 से 1748 ई . तक आलमपुर और 1761 ई . से 1824 ई . तक सुजानपुर टिहरा काँगड़ा रियासत की राजधानी रही । 1660 - 1824 ई . से पूर्व और बाद में काँगड़ा की राजधानी काँगड़ा शहर थी जो कि 1855 ई . में अंग्रेजों ने धर्मशाला स्थानान्तरित कर दी ।

 3 . काँगड़ा का आधुनिक इतिहास (Modern History of Kangra)

अभयचंद ( 1747 ई . से 1750 ई . ) - अभयचंद ने ठाकुरद्वारा और 1748 ई . में टिहरा में एक किले की स्थापना की 
 घमण्डचंद ( 1751 ई . - 1774 ई . ) - घमण्डचंद ने 1761 ई . में सुजानपुर शहर की नींव रखी । अहमदशाह दुर्रानी के आक्रमण ( मुगलों पर ) का फायदा उठाकर घमण्डचंद ने काँगड़ा किला को छोड़कर अपनी पुरानी सारी रियासत पर कब्जा कर लिया । घमण्डचंद को 1759 ई . में अहमदशाह दुर्रानी ने जालंधर दोआब का निजाम बनाया । घमण्डचंद की 1774 ई . में मृत्यु हो गई ।

संसारचंद - II ( 1775 ई . से 1824 ई . ) जस्सा सिंह रामगढ़िया पहला सिख था जिसने काँगड़ा , चम्बा , नूरपुर की पहाड़ियों पर आक्रमण किया । उसे 1775 ई . में जयसिंह कन्हैया ने हराया । संसारचंद ने जयसिंह कन्हैया को काँगड़ा किले पर कब्जे के लिए 1781 | इ . में बुलाया । सैफअली खान की मृत्यु के बाद 1783 ई . में जय सिंह कन्हैया ने काँगड़ा किले पर कब्जा कर लिया । उसने 1787 इ . मैं संसारचंद को काँगड़ा किला सौंप दिया तथा बदले में मैदानी भू - भाग ले लिया ।


ससारचंद के आक्रमण और शासन काल कब तक रहा है?

 ससारचंद के आक्रमण - संसादचंद ने रिहलू के लिए चम्बा के राजा को नेरटी शाहपुर में हराया । उसने मण्डी के राजा ईश्वरीसेनबंदी बना 12 वर्षों तक नदौन में रखा जिसे बाद में अमर सिंह थापा ने छुड़वाया । संसारचंद ने 1794 ई . में बिलासपुर पर आक्रमण किया जो बाद में उसके पतन का कारण बना । कहलूर ( विलासपुर ) के राजा महानचंद ने गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा को संसार  चंद पर आक्रमण के लिए निमंत्रण दिया ।

 संसारचंद का पतन - अमर सिंह थापा ने 1805 ई . में बिलासपुर , सुकेत , सिरमौर चम्बा की संयुक्त सेनाओं के साथ मिलकर महलमोरियो ( हमीरपुर ) में संसारचंद को हराया । संसारचंद ने काँगड़ा किले में शरण ली । संसारचंद ने नौरंग वजीर की मदद से काँगडा किले से निकलकर 1809 में महाराजा रणजीत सिंह के साथ ज्वालामुखी की संधि की । 1809 ई . में महाराजा रणजीत सिंह ने अमर सिंह को हराया । संसारचंद ने काँगड़ा किला और 66 गाँव महाराजा रणजीत सिंह को दिए । महाराजा रणजीत सिंह ने देसा सिंह मजीटिया , को काँगड़ा किले व क्षेत्र का नाजिम ( गर्वनर ) बनाया । संसारचंद की 1824 ई . में मृत्यु हो गई ।

_ अनिरुद्धचंद ( 1824 ) - संसारचंद के बाद उसका बेटा अनिरुद्धचंद काँगड़ा का राजा बना । महाराजा रणजीत सिंह ने अनिन्द्धवंद से अपने प्रधानमंत्री राजा ध्यानसिंह ( जम्मू ) के पुत्र हीरा सिंह के लिए उसकी एक बहन का हाथ माँगा । अनिरुद्धचंद ने टालमटोल कर अपनी बहनों का विवाह टिहरी गढ़वाल के राजा से कर दिया । अनिरुद्धचंद स्वयं ब्रिटिशों के पास अदिनानगर पहुँच गया । वर्ष 1833 ई . में रणजीत सिंह ने अनिरुद्धचंद की मृत्यु के बाद उसके बेटों ( रणबीर चंद और प्रमोदचंद ) को महलमेरियो में जागीर दी । वर्ष 1846 ई . में काँगड़ा पूर्ण रूप से ब्रिटिश प्रभुत्व में आ गया । अनिरुद्धचंद के बाद रणबीर चंद ( 1828 ई . ) , प्रमोद चंद ( 184 ई . ) , प्रतापचंद ( 1857 ई . ) , जयचंद ( 1864 ई . ) और ध्रुवदेव चंद काँगड़ा के राजा बने ।


गुलेर रियासत की स्थापना (origen of Guler State)

गुलेर रियासत का पुराना नाम ग्वालियर था । कांगड़ा के राजा हरिचंद ने 1405 ई . में गुलेर रियासती की स्थापना हरिपुर में की जंहा उसने शहर व किला बनवाया । हरिपुर किले को गुलेर किला भी कहा जाता है । हरिपुर गुलेर रियासत की राजधानी थीं।
राम चंद- 1540-1570 ई . ) - गुलेर रियासत के 15वें राजा ने काँगड़ा के राजा जयचंद को पकड़ने में मुगलों की मदद की ।
जगदीश चंद-( 1570 ई . - 1605 ई . ) - 1572 में काँगड़ा के राजा के विद्रोह को दबाने के लिए जो सेना भेजी उसमें जगदीश चंद ने भाग नही लिया।

 रूपचंद ( 1610 ई . - 1635 ई . ) - रूप चंद ने कांगड़ा किले पर कब्जे के लिए मुगलों की मदद की थी । वह जहांगीर का समकालीन था ।
मानसिह ( 1635 ई . - 1661 ई . ) - मानसिंह को उसकी बहादुरी के लिए शाहजहाँ ने ' शेर अफगान ' की उपाधि दी थी । उसने मकोट व तारागढ़ किले पर 1641 - 42 ई . में कब्जा किया था । मानगढ़ का किला मानसिंह ने बनवाया था । 1661 ई . में बनारस में उसकी मृत्यु हो गई ।

 राज सिंह ( 1675 ई . - 1695 ई . ) - राज सिंह ने चम्बा के राजा चतर सिंह , वसौली के राजा धीरजपाल और जम्मू के किरपाल देव के साथ मिलकर मुगलों को हराया था ।
 प्रकाश सिंह ( 1760 - 1790 ई . ) - प्रकाश सिंह से पूर्व दलीप सिंह ( 1695 - 1730 ) और गोवर्धन सिंह ( 1730 - 1760 ) गलेर के राजा बने । प्रकाश सिंह के समय घमण्डचंद ने गुलेर पर कब्जा किया । बाद में संसारचंद ने गुलेर पर कब्जा किया । ध्यान सिंह वजीर ने कोटला इलाका गुलेर राज्य के कब्जे ( 1785 ) में रखने में मदद की ।

 भूप सिंह ( 1790 - 1820 ई . ) - भूप सिंह गुलेर का आखिरी राजा था जिसने शासन किया । देसा सिंह मजीठिया ने 1811 में गुलेर पर कब्जा कर कोटला किले पर कब्जा कर लिया । भूप सिंह के पुत्र शमशेर सिंह ( 1820 - 1877 ई . ) ने सिक्खों से हरिपुर किला  आजाद करवा लिया था। शमशेर सिंह के बाद जय सिंह   , रघुनाथ सिंह और वलदेव सिंह ( 1920 ई . ) गुलेर वंश के राजा बने ।

नूरपुर राज्य - नूरपुर राज्य का प्राचीन नाम धमेरी था। नूरपुर राज्य की पुरानी राजधानी पठानकोट थी।अकबर
के समय में नूरपुर के राजा बासदेव ने राजधानी पठानकोट से नूरपुर बदली । प्राचीन काल में नूरपुर ओर
पठानकोट औदुम्बर के नाम से जाना जाता था ।

स्थापना - नूरपुर राज्य की स्थापना चंद्रवंशी दिल्ली के तोमर राजपूत झेड़पाल ने 1000 ई. में की गई थी।
जसपाल ( 1313 - 1337 ई . ) - अलाउद्दीन खिलजी का समकालीन था ।
 कैलाशपाल ( 1353 - 97 ई . ) ने ' तातार खान ' ( खुरासान का गवर्नर फिरोजशाह तुगलक के समय) को हराया था।

 भीमपाल ( 1473 - 1513 ई . ) सिकंदर लोदी का समकालीन था ।
भक्तमल ( 1513 - 58 ई . ) - भक्तमल का विवरण ' अकबरनामा ' में मिलता है। भक्तमल के समय शेरशाह सूरी के पुत्र सलिमसुर शाह ने मकोट किला बनवाया । सिकंदर शाह ने अकबर के शासनकाल में 1557 ई में भक्तमल के सहयोग से मकोट किले में शरण ली। मुगलो ने 1558  ई. को भक्तमल को गिरफ्तार कर लाहौर भेज दिया।

तख्तमल-1558 - 80 ई.) को भक्तमल के स्थान पर राजा बनाया गया । वह भक्तमल का भाई था । उसने सर्वप्रथम अपनी राजधानी को पठानकोट से धमेरी बदलने के बारे में सोचा परन्तु हकीकत में लाने से पहले ही मर गया ।

 बासदेव- ( 1580 - 1613 ई . ) - वासदेव ने नूरपुर की राजधानी पठानकोट से घमेरी बदली । बासदेव ने कई बार मुगलों के विरुद्ध तौर पर अकवर ) विद्रोह किया । ये सारे विद्रोह सलीम ( जहाँगीर ) के समर्थन में थे । वासदेब के जहाँगीर के साथ बहुत अच्छे संबंध थे।

 सूरजमल ( 1613- 19 ई . ) -
सूरजमल को बासदेव की मृत्यु के बाद नूरपुर का राजा बनाया गया । वह बासदेव का बेटा था । सूरजमल ने मुर्तजा खां से और बाद में शाह कुली खान एवं मोहम्मद तकी के साथ झगड़ा कर काँगड़ा किले पर कब्जा  के अभियान को रद्द करवा दिया । सूरजमल ने मौके का फायदा उठा खुद काँगड़ा क्षेत्र पर कब्जा करना शुरु कर दिया । जहांगीर ने सुन्दरदास , राय विक्रमजीत ) और सूरजमल के छोटे भाई जगत सिंह को सूरजमल के विद्रोह को दबाने भेजा । सूरजमल चम्बा भाग गया । सूरजमल को 1619 ई. में उसके भाई माधो सिंह के साथ पकड़कर मृत्युदण्ड दे दिया गया । जगत सिंह को नूरपुर का राजा बना दिया गया ।

जगत सिंह ( 1619 - 49 ई . ) - जगत सिंह के समय जहांगीर 1622 ई . में आपनी पली के साथ घमेरी आया । जगत सिंह ने नूरजहां के सम्मान में घमेरी का नाम नूरपुर रखवाया । जगत सिंह ने 1623 ई .में डलोध युद्ध में चम्बा के राजा जनार्धन को मारा और बलभद्र को अपनी पूरी निगरानी में राजा बनाया । बसौली के राजा भूपतपाल को गिरफ्तार कर जगतसिंह ने सबसे पहले 1614 - 15 में बसौली पर कब्जा किया । जगत सिंह और उसके पुत्र राजरूप ने 1640 ई . में मुगलों के विरुद्ध विद्रोह किया जिसे दबाने के लिए शाहजहाँ ने मुरादबखश को भेजा । जगत सिंह के काल में नूरपुर राज्य अपनी समृद्धि के शीर्ष पर था । वह नूरजहां को बेटी कहकर संबोधित करता था ।
 राजरूप सिंह ( 1644 - 1661 ई . ) के बाद मंधाता ( 1661 - 1700 ई . ) नूरपुर के राजा बने । इनके शासनकाल में बाहु सिंह जो कि राजरूप सिंह का भाई था । उसने शाहपुर में मुगलों से जागीर प्राप्त कर राजधानी बनाई । 1686 ई . में भूपसिंह ने इस्लाम कबूल कर मुरीद खान के नाम से प्रसिद्ध हुआ । नूरपुर पर 1781 ई . में सिक्खों ने कब्जा कर लिया ।

 पृथ्वी सिंह ( 1735 - 89 ई . )
- पृथ्वी सिंह के समय घमण्ड चंद , जस्सा सिंह रामगढ़िया , ने नूरपुर क्षेत्र पर कब्जा बनाये रखा । वर्ष 1785 ई . में नूरपुर रियासत लखनपुर के पास स्थानांतरित हो गई जो कि 1846 ई . तक वहीं रही । .

 बीर सिंह ( 1789 - 1846 ई . ) - बीर सिंह नूरपुर राज्य पर शासन करने वाला अंतिम राजा था । वीर सिंह ने 1826 ई . में महाराजा रणजीत सिंह के विरुद्ध विद्रोह किया । वीर सिंह को पकड़कर रणजीत सिंह ने 7 वर्षों तक अमृतसर के गोविंदगढ़ किले में रखा जिसे बाद में चम्बा के राजा चरहट सिंह ने 85 हजार रूपये देकर छुड़वाया क्योंकि वीर सिंह उनका जीजा था । 1846 ई . में अंग्रेजों का नूरपुर पर कब्जा हो गया । वीर सिंह के पुत्र जसवन्त सिंह के समय नूरपुर रियासत के वीर रामसिंह पठानिया ने 1848 ई . में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया । राम सिंह पठानिया को पकड़कर सिंगापुर भेज दिया गया जहां उसकी मृत्यु हो गई । जसवन्त सिंह ने 1857 ई . को विद्रोह में अंग्रेजों के प्रति वफादारी दिखाई थी ।

 ( घ ) सिबा राज्य - सिब्बा राज्य गुलेर राज्य की शाखा थी , जिसकी स्थापना गुलेर के राजा के छोटे भाई सिवराम चंद ने 1450 ई . में की थी । जहाँगीर 1622 ई . में सिबा राज्य भी आया था । सिब्बा राज्य पर 1786 - 1806 ई . तक संसारचंद , 1808 में गुलेर के भूपछचंद और 1809 - 30 तक महाराजा रणजीत सिंह ने कब्जा किया । सिबा राज्य को डाडा सिबा भी कहा जाता है ।

 दत्तारपुर राज्य - दत्तारपुर राज्य जसवों के दक्षिण , सिबा के पश्चिम , गुलेर के उत्तर में स्थित था । दत्तारपुर राज्य सिब्बा राज्य की शाखा थी जिसकी स्थापना r ई . में दत्तारचंद ने की थी । डडवाल इस राज्य के परिवार का उपनाम है । गोविंदचंद ने 1806 ई . में संसारचंद के विरुद्ध गोरखों की सहायता की थी । दत्तारपुर के राजा जगतसिंह ने 1848 ई . में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया तो उन्हें कैद कर अल्मोड़ा भेज दिया गया जहाँ उनकी 1877 ई . में मृत्यु हो गई । . .

( च ) बाघल  राज्य - बाघल राज्य की राजधानी वीर थी । इस राज्य की स्थापना एक ब्राहाण ने की जो राजा बनने के बाद चंद्रवंशी राजपूत कहलाया । ' पाल ' उपनाम वाले इस राज्य के राजाओं में पृथ्वी पाल ( 1710 - 1720 ई . ) प्रसिद्ध है जिसे मण्डी के राजा सिद्ध सेन ने 1720 ई . में दमदमा महल में मरवाया था । पृथ्वीपाल के बाद रघुनाथ पाल ( 1720 - 1735 ई . ) और दलेल पाल (1735-45 ) राजा बने । मानपाल ( 1749 ई . ) बघाहल का अंतिम शासक था ।
उसके बाद कांगड़ा और गुलेर ने इस पर कब्जा लिया ।



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हालो दोस्तो, इस टॉपिक में आप हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले का सम्पूर्ण  इतिहास के बारे में पढ़ोगे। मुझे उमीद है कि आप को इस साइट पर दी गई सम्पूर्ण जानकारी किसी ओर जगह नही मिलिगी, मेने इस टॉपिक में पूरा इतिहास cover किया है। आप शुरू से अंत तक पड़े। यदि आप किसी सरकारी नॉकरी की तैयारियां कर रहे है तो आपको काफी फायेदा मिलेगा। चलिए शुरू करते है।
 

कांगड़ा का इतीहास, Kangra history in hindi

1. कॉगड़ा रियासत का प्राचीन इतिहास  क्या है?

2 कॉगड़ा रियासत का मध्यकालीन इतिहास, क्या है? महमूद गजनवी का आक्रमण।

3 . काँगड़ा का आधुनिक इतिहास (राजा तथा उनका शासन काल) कब तक था?
4. ससारचंद के आक्रमण और शासन काल कब तक रहा?
5.गुलेर रियासत की स्थापना के हुई?   

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1. कांगड़ा का प्राचीन इतिहास (Ancient history of kangda)

1 . कॉगड़ा रियासत का प्राचीन इतिहास - काँगडा प्राचीन काल में त्रिगर्त के नाम से मशहूर था।जिसकी स्थापना महाभारत युद्ध से पूर्व मानी जाती है । इस रियासत की स्थापना भूमिचंद ने की थी जिसकी राजधानी मुल्तान ( पाकिस्तान) थी।इस बंश के  234वें राजा सुशर्मा ने जालंधर /त्रिगर्त के कांगड़ा में किले की स्थापना कर उसको अपनी राजधानी बनाया।

त्रिगर्त का अर्थ - त्रिगर्त का शाब्दिक अर्थ तीन नदियों रावी , व्यास और सतलुज क बीच फैले भू-भाग से है। बाण गंगा , कुराली,और न्यूगल के संगम स्थल को भी त्रिगर्त कहा जाता है ।
जालन्धर - पद्मपुराण और कनिंघम के अनुसार जालंधर नाम दानव जालंधर से लिया गया। जिसको भगवान शिव ने मारा था।
राजधानी - त्रिगर्त रियासत की राजधानी नगरकोट ( वर्तमान काँगड़ा शहर ) थी जिसे भीमकोट, भीम नगर ओर सुषर्मापुर के नाम  से भी जाना जाता था । इस शहर की स्थापना सुशर्मा ने की थी । महमूद गजनवी के उतबी ने अपनी पुस्तक में इसे भीमनगर, फरिश्ता ने  भीमकोट , अलबरूनी ने नगरकोट की संज्ञा दी थी ।


पुस्तकों में विबरण- त्रिगर्त नाम महाभारत, पुराणों ओर राजतरंगिणी में मिलता है।पाणिनी के अष्टध्य में त्रिगर्त को आयुद्धजीबी संघ कहा गया है।

महाभारत काल - महाभारत के युद्ध में सुशर्मा ने कौरवों का पक्ष लिया किया था ।
 कागड़ा का अर्थ - कांगड़ा का अर्थ है कान का गढ़ । भगवान शिव ने जब जालन्धर राक्षस को मारा तो उसके कान जिस जगह गिरे वही स्थान कालांतर में कांगड़ा कहलाया ।

 यूरोपीय यात्री - 1615 ई . में  थामस कोरयाट , 1666 ई . में थेवेनोट , 1783 में फॉस्टर और 1832 ई . में विलियम मूरक्रॉफ्ट ने कांगड़ा की यात्रा की ।
राजतरंगिनी के अनुसार 470 ई . में श्रेष्ठ सेना , 520 ई . में प्रवर सेना ( दोनों कश्मीर के राजा ) ने त्रिगत पर आक्रमण कर उसे जीता था। ह्वेनसांग 635 ई . में कांगड़ा के राजा उतितों ( उदिमा ) के मेहमान बनकर काँगड़ा आये । वह पुनः 643 ई . में काँगड़ा आये । कांगड़ा के राजा पृथ्वीचंद ( 883 - 903 ) ने कश्मीर के राजा शंकरवर्मन के विरुद्ध युद्ध किया था ।

कांगड़ा किला


2 . कांगड़ा का मध्यकालीन इतिहास क्या है ?(Medieval History of Kangra)

महमूद गजनवी ने 1009 ई . में औहिंद के राजा आनंदपाल और उसके पुत्र ब्रह्मपाल को हराकर काँगडा पर आक्रमण किया । उस समय काँगड़ा का राजा जगदीश चंद्र था । काँगड़ा किला 1043 ई . तक तुर्कों के कब्जे में रहा । 1043 ई . में कागड़ा किला तोमर राजाओं ने आजाद करवाया । परन्तु वह 1051 - 52 ई . में पुनः तुर्कों के कब्जे में चला गया । 1060 ई . में कॉगड़ा राजाओं ने पुनः काँगड़ा किले पर कब्जा कर लिया । 1170 ई . में पदमचन्द और पूर्वचन्द ( जसवान राज्य का संस्थापक ) ने काँगड़ा पर राज किया ।

तुगलक - पृथ्वीचंद ( 1330 ई . ) मुहम्मद बिन तुगलक के 1337 ई . के काँगड़ा आक्रमण के समय कांगड़ा का राजा था । रूपचंद ( 1360 ई . ) फिरोजशाह तुगलक के 1365 ई . के आक्रमण के समय कागड़ा का राजा था । रूपचंद का नाम ' मानिकचंद ' के नाटक ' धर्मचन्द्र नाटक ' में भी मिला है जो 1562 ई . के आसपास लिखा गया था । फिरोजशाह तुगलक ज्वालामुखी मंदिर से 1300 पस्तके । फारसी में अनुवाद के लिए ले गया । इन पुस्तकों का फारसी में दलील - ए - फिरोजशाही ' के नाम से अनुवाद ' इज्जुद्दीन खालिदखानी ' ने किया । फिरोजशाह तुगलक के पुत्र नसीरुद्दीन ने 1389 ई . में भागकर नगरकोट पहाड़ियों में शरण ली थी तब काँगड़ा का राजा सागरचंद ( 1375 ई . ) था ।


 तैमूरलंग - काँगड़ा के राजा मेघचंद , ( 1390 ई . ) , के समय 1398 ई . में तैमर लंग ने शिवालिक की पहाड़ियों को लूटा था । वर्ष 1399 ई . में वापसी में तैमूरलंग के हाथों धमेरी ( नूरपुर ) को लूटा गया । हण्ड्र ( नालागढ़ ) के राजा आलमचंद ने तैमूरलंग की मदद की थी ।

 हरिचंद - 1 ( 1405 ई . ) और कर्मचंद - हरिचंद - I एक बार शिकार के लिए हडसर ( गलेर ) गये जहाँ वे अपने सैनिकों से बिछुड़ गये और कई दिनों तक नहीं मिले । उन्हें मरा समझकर उनके भाई कर्मचंद को राजा बना दिया गया । हरिचंद को 21 दिन बाद एक व्यापारी राहगीर ने खोजा । हरिचंद को अपने भाई के राजा बनने का समाचार मिला तो उन्होंने हरिपुर में किला व राजधानी बनाकर गलेर राज्य की स्थापना की । आज भी गुलेर को काँगड़ा के हर त्योहार / उत्सव में प्राथमिकता मिलती है क्योंकि वह काँगड़ा वंश के बड़े भाई द्वारा स्थापित किया गया था । संसारचंद - I कर्मचंद का बेटा था जो 1430 ई . में राजा बना ।

मुगलवंश - धर्मचंद ( 1528 ई . से 1563 ई . ) , मानिक चंद ( 1563 ई . से 1570 ई . ) , जयचंद ( 1570 ई . - 1585 ई . ) और विधिचंद ( 1585 ई . से 1605 ) ई . अकबर के समकालीन राजा थे । राजा जयचंद ( 1570 ई . से 1585 ई . ) को अकबर ने गुलेर के राजा रामचंद की सहायता से बंदी बनाया था । राजा जयचंद के बेटे विधिचंद ने 1572 ई . में अकबर के विरुद्ध विद्रोह किया । अकबर ने हुसैन कुली खान को काँगड़ा पर कब्जा कर राजा बीरबल को देने के लिए भेजा । ' तबाकत - ए - अकबरी ' के अनुसार खानजहाँ ने 1572 ई . में काँगड़ा किले पर कब्जा कर लिया परन्तु हुसैन मिर्जा और मसूद मिर्जा के पंजाब आक्रमण की वजह से उसे इसे छोड़ना पड़ा । अकबर ने टोडरमल को पहाड़ी क्षेत्रों को मापने के लिए भेजा । 1589 ई . में विधिचंद ने पहाड़ी राजाओं से मिलकर विद्रोह किया परन्तु उसे हार मिली । उसे अपने पुत्र त्रिलोकचंद को बंधक के तौर पर मुगल दरबार में रखना पड़ा ।

 आलमचंद ( 1697 ई . से 1700 ई . ) - ने 1697 ई . में सुजानपुर के पास आलमपुर शहर की नींव रखी ।

 हमीरचंद ( 1700 ई . से 1747 ई . ) - आलमचंद के पुत्र हमीरचंद ने हमीरपर में किला बनाकर हमीरपुर शहर की नींव रखी । रसी के कार्यकाल में नवाब सैफअली खान ( 1740 ई . ) काँगड़ा किले का अंतिम मुगल किलेदार बना ।

 राजधानी - 1660 ई . से 1697 ई . तक बीजापुर , 1697 से 1748 ई . तक आलमपुर और 1761 ई . से 1824 ई . तक सुजानपुर टिहरा काँगड़ा रियासत की राजधानी रही । 1660 - 1824 ई . से पूर्व और बाद में काँगड़ा की राजधानी काँगड़ा शहर थी जो कि 1855 ई . में अंग्रेजों ने धर्मशाला स्थानान्तरित कर दी ।

 3 . काँगड़ा का आधुनिक इतिहास (Modern History of Kangra)

अभयचंद ( 1747 ई . से 1750 ई . ) - अभयचंद ने ठाकुरद्वारा और 1748 ई . में टिहरा में एक किले की स्थापना की 
 घमण्डचंद ( 1751 ई . - 1774 ई . ) - घमण्डचंद ने 1761 ई . में सुजानपुर शहर की नींव रखी । अहमदशाह दुर्रानी के आक्रमण ( मुगलों पर ) का फायदा उठाकर घमण्डचंद ने काँगड़ा किला को छोड़कर अपनी पुरानी सारी रियासत पर कब्जा कर लिया । घमण्डचंद को 1759 ई . में अहमदशाह दुर्रानी ने जालंधर दोआब का निजाम बनाया । घमण्डचंद की 1774 ई . में मृत्यु हो गई ।

संसारचंद - II ( 1775 ई . से 1824 ई . ) जस्सा सिंह रामगढ़िया पहला सिख था जिसने काँगड़ा , चम्बा , नूरपुर की पहाड़ियों पर आक्रमण किया । उसे 1775 ई . में जयसिंह कन्हैया ने हराया । संसारचंद ने जयसिंह कन्हैया को काँगड़ा किले पर कब्जे के लिए 1781 | इ . में बुलाया । सैफअली खान की मृत्यु के बाद 1783 ई . में जय सिंह कन्हैया ने काँगड़ा किले पर कब्जा कर लिया । उसने 1787 इ . मैं संसारचंद को काँगड़ा किला सौंप दिया तथा बदले में मैदानी भू - भाग ले लिया ।


ससारचंद के आक्रमण और शासन काल कब तक रहा है?

 ससारचंद के आक्रमण - संसादचंद ने रिहलू के लिए चम्बा के राजा को नेरटी शाहपुर में हराया । उसने मण्डी के राजा ईश्वरीसेनबंदी बना 12 वर्षों तक नदौन में रखा जिसे बाद में अमर सिंह थापा ने छुड़वाया । संसारचंद ने 1794 ई . में बिलासपुर पर आक्रमण किया जो बाद में उसके पतन का कारण बना । कहलूर ( विलासपुर ) के राजा महानचंद ने गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा को संसार  चंद पर आक्रमण के लिए निमंत्रण दिया ।

 संसारचंद का पतन - अमर सिंह थापा ने 1805 ई . में बिलासपुर , सुकेत , सिरमौर चम्बा की संयुक्त सेनाओं के साथ मिलकर महलमोरियो ( हमीरपुर ) में संसारचंद को हराया । संसारचंद ने काँगड़ा किले में शरण ली । संसारचंद ने नौरंग वजीर की मदद से काँगडा किले से निकलकर 1809 में महाराजा रणजीत सिंह के साथ ज्वालामुखी की संधि की । 1809 ई . में महाराजा रणजीत सिंह ने अमर सिंह को हराया । संसारचंद ने काँगड़ा किला और 66 गाँव महाराजा रणजीत सिंह को दिए । महाराजा रणजीत सिंह ने देसा सिंह मजीटिया , को काँगड़ा किले व क्षेत्र का नाजिम ( गर्वनर ) बनाया । संसारचंद की 1824 ई . में मृत्यु हो गई ।

_ अनिरुद्धचंद ( 1824 ) - संसारचंद के बाद उसका बेटा अनिरुद्धचंद काँगड़ा का राजा बना । महाराजा रणजीत सिंह ने अनिन्द्धवंद से अपने प्रधानमंत्री राजा ध्यानसिंह ( जम्मू ) के पुत्र हीरा सिंह के लिए उसकी एक बहन का हाथ माँगा । अनिरुद्धचंद ने टालमटोल कर अपनी बहनों का विवाह टिहरी गढ़वाल के राजा से कर दिया । अनिरुद्धचंद स्वयं ब्रिटिशों के पास अदिनानगर पहुँच गया । वर्ष 1833 ई . में रणजीत सिंह ने अनिरुद्धचंद की मृत्यु के बाद उसके बेटों ( रणबीर चंद और प्रमोदचंद ) को महलमेरियो में जागीर दी । वर्ष 1846 ई . में काँगड़ा पूर्ण रूप से ब्रिटिश प्रभुत्व में आ गया । अनिरुद्धचंद के बाद रणबीर चंद ( 1828 ई . ) , प्रमोद चंद ( 184 ई . ) , प्रतापचंद ( 1857 ई . ) , जयचंद ( 1864 ई . ) और ध्रुवदेव चंद काँगड़ा के राजा बने ।


गुलेर रियासत की स्थापना (origen of Guler State)

गुलेर रियासत का पुराना नाम ग्वालियर था । कांगड़ा के राजा हरिचंद ने 1405 ई . में गुलेर रियासती की स्थापना हरिपुर में की जंहा उसने शहर व किला बनवाया । हरिपुर किले को गुलेर किला भी कहा जाता है । हरिपुर गुलेर रियासत की राजधानी थीं।
राम चंद- 1540-1570 ई . ) - गुलेर रियासत के 15वें राजा ने काँगड़ा के राजा जयचंद को पकड़ने में मुगलों की मदद की ।
जगदीश चंद-( 1570 ई . - 1605 ई . ) - 1572 में काँगड़ा के राजा के विद्रोह को दबाने के लिए जो सेना भेजी उसमें जगदीश चंद ने भाग नही लिया।

 रूपचंद ( 1610 ई . - 1635 ई . ) - रूप चंद ने कांगड़ा किले पर कब्जे के लिए मुगलों की मदद की थी । वह जहांगीर का समकालीन था ।
मानसिह ( 1635 ई . - 1661 ई . ) - मानसिंह को उसकी बहादुरी के लिए शाहजहाँ ने ' शेर अफगान ' की उपाधि दी थी । उसने मकोट व तारागढ़ किले पर 1641 - 42 ई . में कब्जा किया था । मानगढ़ का किला मानसिंह ने बनवाया था । 1661 ई . में बनारस में उसकी मृत्यु हो गई ।

 राज सिंह ( 1675 ई . - 1695 ई . ) - राज सिंह ने चम्बा के राजा चतर सिंह , वसौली के राजा धीरजपाल और जम्मू के किरपाल देव के साथ मिलकर मुगलों को हराया था ।
 प्रकाश सिंह ( 1760 - 1790 ई . ) - प्रकाश सिंह से पूर्व दलीप सिंह ( 1695 - 1730 ) और गोवर्धन सिंह ( 1730 - 1760 ) गलेर के राजा बने । प्रकाश सिंह के समय घमण्डचंद ने गुलेर पर कब्जा किया । बाद में संसारचंद ने गुलेर पर कब्जा किया । ध्यान सिंह वजीर ने कोटला इलाका गुलेर राज्य के कब्जे ( 1785 ) में रखने में मदद की ।

 भूप सिंह ( 1790 - 1820 ई . ) - भूप सिंह गुलेर का आखिरी राजा था जिसने शासन किया । देसा सिंह मजीठिया ने 1811 में गुलेर पर कब्जा कर कोटला किले पर कब्जा कर लिया । भूप सिंह के पुत्र शमशेर सिंह ( 1820 - 1877 ई . ) ने सिक्खों से हरिपुर किला  आजाद करवा लिया था। शमशेर सिंह के बाद जय सिंह   , रघुनाथ सिंह और वलदेव सिंह ( 1920 ई . ) गुलेर वंश के राजा बने ।

नूरपुर राज्य - नूरपुर राज्य का प्राचीन नाम धमेरी था। नूरपुर राज्य की पुरानी राजधानी पठानकोट थी।अकबर
के समय में नूरपुर के राजा बासदेव ने राजधानी पठानकोट से नूरपुर बदली । प्राचीन काल में नूरपुर ओर
पठानकोट औदुम्बर के नाम से जाना जाता था ।

स्थापना - नूरपुर राज्य की स्थापना चंद्रवंशी दिल्ली के तोमर राजपूत झेड़पाल ने 1000 ई. में की गई थी।
जसपाल ( 1313 - 1337 ई . ) - अलाउद्दीन खिलजी का समकालीन था ।
 कैलाशपाल ( 1353 - 97 ई . ) ने ' तातार खान ' ( खुरासान का गवर्नर फिरोजशाह तुगलक के समय) को हराया था।

 भीमपाल ( 1473 - 1513 ई . ) सिकंदर लोदी का समकालीन था ।
भक्तमल ( 1513 - 58 ई . ) - भक्तमल का विवरण ' अकबरनामा ' में मिलता है। भक्तमल के समय शेरशाह सूरी के पुत्र सलिमसुर शाह ने मकोट किला बनवाया । सिकंदर शाह ने अकबर के शासनकाल में 1557 ई में भक्तमल के सहयोग से मकोट किले में शरण ली। मुगलो ने 1558  ई. को भक्तमल को गिरफ्तार कर लाहौर भेज दिया।

तख्तमल-1558 - 80 ई.) को भक्तमल के स्थान पर राजा बनाया गया । वह भक्तमल का भाई था । उसने सर्वप्रथम अपनी राजधानी को पठानकोट से धमेरी बदलने के बारे में सोचा परन्तु हकीकत में लाने से पहले ही मर गया ।

 बासदेव- ( 1580 - 1613 ई . ) - वासदेव ने नूरपुर की राजधानी पठानकोट से घमेरी बदली । बासदेव ने कई बार मुगलों के विरुद्ध तौर पर अकवर ) विद्रोह किया । ये सारे विद्रोह सलीम ( जहाँगीर ) के समर्थन में थे । वासदेब के जहाँगीर के साथ बहुत अच्छे संबंध थे।

 सूरजमल ( 1613- 19 ई . ) -
सूरजमल को बासदेव की मृत्यु के बाद नूरपुर का राजा बनाया गया । वह बासदेव का बेटा था । सूरजमल ने मुर्तजा खां से और बाद में शाह कुली खान एवं मोहम्मद तकी के साथ झगड़ा कर काँगड़ा किले पर कब्जा  के अभियान को रद्द करवा दिया । सूरजमल ने मौके का फायदा उठा खुद काँगड़ा क्षेत्र पर कब्जा करना शुरु कर दिया । जहांगीर ने सुन्दरदास , राय विक्रमजीत ) और सूरजमल के छोटे भाई जगत सिंह को सूरजमल के विद्रोह को दबाने भेजा । सूरजमल चम्बा भाग गया । सूरजमल को 1619 ई. में उसके भाई माधो सिंह के साथ पकड़कर मृत्युदण्ड दे दिया गया । जगत सिंह को नूरपुर का राजा बना दिया गया ।

जगत सिंह ( 1619 - 49 ई . ) - जगत सिंह के समय जहांगीर 1622 ई . में आपनी पली के साथ घमेरी आया । जगत सिंह ने नूरजहां के सम्मान में घमेरी का नाम नूरपुर रखवाया । जगत सिंह ने 1623 ई .में डलोध युद्ध में चम्बा के राजा जनार्धन को मारा और बलभद्र को अपनी पूरी निगरानी में राजा बनाया । बसौली के राजा भूपतपाल को गिरफ्तार कर जगतसिंह ने सबसे पहले 1614 - 15 में बसौली पर कब्जा किया । जगत सिंह और उसके पुत्र राजरूप ने 1640 ई . में मुगलों के विरुद्ध विद्रोह किया जिसे दबाने के लिए शाहजहाँ ने मुरादबखश को भेजा । जगत सिंह के काल में नूरपुर राज्य अपनी समृद्धि के शीर्ष पर था । वह नूरजहां को बेटी कहकर संबोधित करता था ।
 राजरूप सिंह ( 1644 - 1661 ई . ) के बाद मंधाता ( 1661 - 1700 ई . ) नूरपुर के राजा बने । इनके शासनकाल में बाहु सिंह जो कि राजरूप सिंह का भाई था । उसने शाहपुर में मुगलों से जागीर प्राप्त कर राजधानी बनाई । 1686 ई . में भूपसिंह ने इस्लाम कबूल कर मुरीद खान के नाम से प्रसिद्ध हुआ । नूरपुर पर 1781 ई . में सिक्खों ने कब्जा कर लिया ।

 पृथ्वी सिंह ( 1735 - 89 ई . )
- पृथ्वी सिंह के समय घमण्ड चंद , जस्सा सिंह रामगढ़िया , ने नूरपुर क्षेत्र पर कब्जा बनाये रखा । वर्ष 1785 ई . में नूरपुर रियासत लखनपुर के पास स्थानांतरित हो गई जो कि 1846 ई . तक वहीं रही । .

 बीर सिंह ( 1789 - 1846 ई . ) - बीर सिंह नूरपुर राज्य पर शासन करने वाला अंतिम राजा था । वीर सिंह ने 1826 ई . में महाराजा रणजीत सिंह के विरुद्ध विद्रोह किया । वीर सिंह को पकड़कर रणजीत सिंह ने 7 वर्षों तक अमृतसर के गोविंदगढ़ किले में रखा जिसे बाद में चम्बा के राजा चरहट सिंह ने 85 हजार रूपये देकर छुड़वाया क्योंकि वीर सिंह उनका जीजा था । 1846 ई . में अंग्रेजों का नूरपुर पर कब्जा हो गया । वीर सिंह के पुत्र जसवन्त सिंह के समय नूरपुर रियासत के वीर रामसिंह पठानिया ने 1848 ई . में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया । राम सिंह पठानिया को पकड़कर सिंगापुर भेज दिया गया जहां उसकी मृत्यु हो गई । जसवन्त सिंह ने 1857 ई . को विद्रोह में अंग्रेजों के प्रति वफादारी दिखाई थी ।

 ( घ ) सिबा राज्य - सिब्बा राज्य गुलेर राज्य की शाखा थी , जिसकी स्थापना गुलेर के राजा के छोटे भाई सिवराम चंद ने 1450 ई . में की थी । जहाँगीर 1622 ई . में सिबा राज्य भी आया था । सिब्बा राज्य पर 1786 - 1806 ई . तक संसारचंद , 1808 में गुलेर के भूपछचंद और 1809 - 30 तक महाराजा रणजीत सिंह ने कब्जा किया । सिबा राज्य को डाडा सिबा भी कहा जाता है ।

 दत्तारपुर राज्य - दत्तारपुर राज्य जसवों के दक्षिण , सिबा के पश्चिम , गुलेर के उत्तर में स्थित था । दत्तारपुर राज्य सिब्बा राज्य की शाखा थी जिसकी स्थापना r ई . में दत्तारचंद ने की थी । डडवाल इस राज्य के परिवार का उपनाम है । गोविंदचंद ने 1806 ई . में संसारचंद के विरुद्ध गोरखों की सहायता की थी । दत्तारपुर के राजा जगतसिंह ने 1848 ई . में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया तो उन्हें कैद कर अल्मोड़ा भेज दिया गया जहाँ उनकी 1877 ई . में मृत्यु हो गई । . .

( च ) बाघल  राज्य - बाघल राज्य की राजधानी वीर थी । इस राज्य की स्थापना एक ब्राहाण ने की जो राजा बनने के बाद चंद्रवंशी राजपूत कहलाया । ' पाल ' उपनाम वाले इस राज्य के राजाओं में पृथ्वी पाल ( 1710 - 1720 ई . ) प्रसिद्ध है जिसे मण्डी के राजा सिद्ध सेन ने 1720 ई . में दमदमा महल में मरवाया था । पृथ्वीपाल के बाद रघुनाथ पाल ( 1720 - 1735 ई . ) और दलेल पाल (1735-45 ) राजा बने । मानपाल ( 1749 ई . ) बघाहल का अंतिम शासक था ।
उसके बाद कांगड़ा और गुलेर ने इस पर कब्जा लिया ।



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