भारत में बैंकिंग : Indian Banking

भारत में बैंकिंग : Indian Banking


Indian Banking History

बैंक ऑफ हिन्दुस्तान (1770 ई०) यूरोपियन प्रबन्धन में भारत का पहला बैंक था। 
• इसके बाद देश में निजी और सरकारी अंशधारियों द्वारा तीन प्रेसीडेन्सी बैंकों की स्थापना की गई- वर्ष 1806 में बैंक ऑफ बंगाल, वर्ष 1840 में बैंक ऑफ बॉम्बे तथा वर्ष 1843 में बैंक ऑफ मद्रास । इन तीनों बैंकों के शेयर पूँजी में सरकार का भी कुछ हिस्सा था। अतः सरकार इन तीनों बैंकों पर अपना नियन्त्रण रखती थी। बाद में इन बैंकों के कार्यों को सीमित कर दिया गया। वर्ष 1921 में इन तीनों बैंकों को मिलाकर इम्पीरियल बैंक ऑफ इण्डिया
(Imperial Bank of India) की स्थापना की गई और 1 जुलाई, 1955 को राष्ट्रीयकरण के उपरान्त इसका नाम बदलकर 'स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया" रख दिया गया।

* भारत में पहला सीमित देयता वाला भारतीय बैंक अवध कमर्शियल बैंक था जिसकी स्थापना फैजाबाद में वर्ष 1881 में की गयी थी। 
* उसके बाद वर्ष 1894 में लाहौर में पंजाब नेशनल बैंक की स्थापना हुई जो पहला पूर्ण रूप से प्रथम भारतीय बैंक था।

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया' (R.B.I.) 2022-23
भारत का केन्द्रीय बैंक  है।
• वर्ष 1930 में केंद्रीय बैंकिंग जाँच समिति की सिफारिश के आधार पर भारत के केंद्रीय बैंक के रूप में 'रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया' (R.B.I.) की स्थापना R.B.I अधिनियम 1934 के तहत 1 अप्रैल, 1935 को 5 करोड़ रुपए की अधिकृत पूँजी से हुई थी। 1 जनवरी, 1949 को R.B.I का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। इसके प्रथम गवर्नर सर ओसबोर्न स्मिथ (1935-37) थे। देश के स्वतंत्रता के समय में R.B.I. के गवर्नर सर सी. डी. देशमुख (1943-49) थे! 

* रिजर्व बैंक के कार्यों का संचालन केंद्रीय संचालक मंडल (Central Board of Directors) द्वारा होता है। सारे देश को चार भागों में बाँटा गया है -उत्तरी क्षेत्र, दक्षिणी क्षेत्र, पूर्वी क्षेत्र तथा पश्चिमी क्षेत्र । इसमें प्रत्येक के लिए 5 सदस्यों का एक स्थानीय बोर्ड (Local board) होता है।

• केंद्रीय बोर्ड में 1 गवर्नर तथा अधिक से अधिक 4 डिप्टी गवर्नर होते हैं, जिनकी नियुक्ति केंद्र सरकार पाँच वर्षों के लिए करती है।

* स्थानीय बोर्डों के कार्यालय नई दिल्ली, चेन्नई, कोलकाता और मुंबई में हैं। स्थानीय बोर्ड केंद्रीय बोर्ड के आदेशानुसार कार्य करते हैं।

रिजर्व बैंक का प्रधान अथवा केंद्रीय कार्यालय मुंबई में स्थित है। नई दिल्ली, कोलकाता तथा चेन्नई में स्थानीय प्रधान कार्यालय हैं।

भारतीय रिजर्व बैंक के कार्य,  Functions of Reserve Bank of India

नोट निर्गमन (Issue of Paper Currency)- एक रुपए के नोट तथा सभी सिक्कों को छोड़कर रिजर्व बैंक को विभिन्न मूल्यवर्ग के नोटों को जारी करने का एकाधिकार प्राप्त है। रिजर्व बैंक सरकार के प्रतिनिधि के रूप में एक रूपए के नोटों तथा सिक्कों एवं छोटे सिक्को का देशभर में वितरण का कार्य करता है।

करेन्सी नोट जारी करने के लिए वर्तमान में रिजर्व बैंक नोट प्रचालन की न्यूनतम निधि पद्धति (Minimum Reserve System) को अपनाता है। इस पद्धति के अन्तर्गत रिजर्व बैंक के पास स्वर्ण एवं विदेशी ऋणपत्र कुल मिलाकर किसी भी समय 200 करोड़ रुपए के मूल्य से कम नहीं होने चाहिए। इनमें स्वर्ण का मूल्य (धातु तथा मुद्रा मिलाकर) 115 करोड़ रुपए से कम नहीं होना चाहिए। यह पद्धति रिजर्व बैंक ने 1957 के बाद अपनाई थी।

नोट:
भारत में सिक्के सीमित विधि ग्राह्य (Limited Legal Tender) है।

● भारत में कागजी नोट असीमित विधि ग्राह्य (Unlimited Legal Tender) हैं।

• इसका अर्थ यह है कि भुगतान का निपटारा करने के लिए सिक्कों का प्रयोग केवल एक सीमा तक ही किया जा सकता है। इसके विपरीत, कागजी नोटों के रूप में भुगतानों का निपटारा करने हेतु उनका प्रयोग असीमित मात्रा में किया जा सकता है।

सरकार के बैंकर का कार्य करना

के रूप में यह निम्नलिखित कार्य सम्पन्न करता है- 
* भारत सरकार तथा राज्य सरकारों की ओर से धन प्राप्त करना और इनके आदेशानुसार इनका भुगतान करना।

* भारत सरकार तथा राज्य सरकारों की ओर से जनता से ऋण प्राप्त करना।
* सरकारी कोषों का स्थानान्तरण करना।

* भारत सरकार एवं राज्य सरकारों के लिए विदेशी विनिमय का प्रबन्ध करना।
* भारत सरकार एवं राज्य सरकारों को आर्थिक
   सलाह देना।

. रिजर्व बैंक : बैंकों का बैंक
बैंकों के बैंक के रूप में यह निम्नलिखित कार्य करता है

* रिजर्व बैंक व्यापारिक बैंकों का अन्तिम ऋणदाता है। 

* रिजर्व बैंक बैंकों की साख नीति पर नियन्त्रण रखता है। 

• वर्ष 1949 के बैंकिंग नियमन अधिनियम के अन्तर्गत रिजर्व बैंक को व्यापक अधिकार प्राप्त हैं;

जैसे- अनुसूचित बैंक का निरीक्षण करना, नए बैंको की स्थापना के लिए अनुज्ञा पत्र प्रदान करना, आदि।

* विदेशी विनिमय कोष का संरक्षण करना—केंद्रीय बैंक देश के विदेशी विनिमय कोष के संरक्षक के रूप में भी कार्य करता है। केंद्रीय बैंक विदेशी मुद्राओं के कोष संचित रखता है जिससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार के विकास तथा विनिमय दर की स्थिरता को बनाए रखा जा सके। 

* साख का नियन्त्रण करना
-साख तथा मुद्रा पर नियन्त्रण करने के लिए रिजर्व बैंक देश में मुद्रा तथा साख की माँग व पूर्ति के मध्य सन्तुलन स्थापित करने का प्रयास करता है। देश में मौद्रिक स्थायित्व लाने के लिए यह एक महत्वपूर्ण कार्य है।

कृषि साख की व्यवस्था करना— 
कृषि साख की व्यवस्था करने के लिए रिजर्व बैंक ने एक कृषि साख विभाग की स्थापना की है। इस विभाग का मुख्य कार्य कृषि साख से सम्बन्धित समस्याओं के बारे में अनुसन्धान करना है।

समाशोधन गृह का कार्य करना 
रिजर्व बैंक देश का केन्द्रीय बैंक है। यह बैंको को समाशोधन गृह (Clearing House) की सुविधा प्रदान करता है। यह कार्य करके रिजर्व बैक सदस्य बैंकों में रुपए के स्थानान्तरण को सुविधाजनक बनाता है।

● समाशोधन गृह के कार्य को एक उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है। मान लीजिए A बैंक के पास B बैंक के नाम का लिखा ₹10,000 का चैक आता है सरकारी बैंकर और B के पास A के नाम का लिखा ₹15,000 का चैक आता है। A एवं B दोनों बैंकों का खाता केंद्रीय बैंक में है। दोनों बैंकों के चैक का समाशोधन केंद्रीय बैंक में उनके खातों के माध्यम से होता है। इस प्रकार केंद्रीय बैंक समाशोधन गृह के रूप में कार्य करता है। यह नकद हस्तांतरण नहीं करता है। इस प्रकार केंद्रीय बैंक वाणिज्यिक बैंकों की नकद कोष आवश्यकता को कम करता है।

* औद्योगिक वित्त की व्यवस्था में सहायता करना 
रिजर्व बैंक ने 'औद्योगिक वित्त निगम' तथा 'राज्य वित्त
निगमों' के बड़ी मात्रा में अंश खरीद रखे हैं। आवश्यकता पड़ने पर वह दीर्घकालीन व मध्यकालीन ऋण भी प्रदान करता है।

* आर्थिक व्यवस्था से सम्बन्धित समंक एकत्रित करना 
- रिजर्व बैंक मुद्रा, साख, बँकिंग, वित्त, कृषि एवं औद्योगिक उत्पादन आदि से सम्बन्धित आंकड़े एकत्रित करता है और उन्हें प्रकाशित करता है। ये आँकड़े देश की विभिन्न आर्थिक समस्याओं को समझने में सहायता देते हैं।



अनुसूचित और गैर-अनुसूचित बैंक(Scheduled and Non-Scheduled Banks)
: अनुसूचित बैंक वे बैंक है जो भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम की दूसरी अनुसूची, 1934 मे निहित हैं। इन बैंकों के पास प्रदत्त पूँजी (paid up capital) होती है और 5 लाख तक का कुल मूल्य का भंडार होता है। इन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक को विश्वास दिलाना होता है कि इनके सभी कार्य जमाकर्ताओं के हित में किए जा रहे हैं। 
■ सभी वाणिज्यिक बैंक (भारतीय और विदेशी), क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, राज्य सहकारी बैंक अनुसूचित बैंक है।
• गैर अनुसूचित बैंक वे बैंक है जो भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की दूसरी अनुसूची में शामिल नहीं है।

भारत की वर्तमान करेन्सी व्यवस्था
भारतीय करेन्सी व्यवस्था की इकाई रुपया है जिसमें कागजी करेन्सी और सिक्के दोनों प्रचलित है। सिक्के एवं एक रुपये का नोट (जिस पर वित्त सचिव, भारत सरकार के हस्ताक्षर होते हैं) भारत सरकार निर्गत करती है, जबकि 2, 5, 10, 20, 50, 100, 200, 500 तथा 2000 रुपये के करेन्सी नोट भारतीय रिजर्व बैंक निर्गत करता है।

साख  नियन्त्रण  ( Control of Credit)
. रिजर्व बैंक साख के नियन्त्रण एवं नियमन हेतु दो प्रकार के साधनों का प्रयोग करता है
() परिमाणात्मक या मात्रात्मक साख नियन्त्रण,
(ख) गुणात्मक साख नियन्त्रण। 

• परिमाणात्मक (Quantitative) विधियाँ
• इन विधियों (या उपकरणों) द्वारा एक अर्थव्यवस्था की कुल मुद्रा पूर्ति / साख को प्रभावित किया जा सकता है। इनके द्वारा साख के प्रवाह को न तो अर्थव्यवस्था के किसी खास क्षेत्र की ओर निर्देशित किया जाता है और न ही सीमित किया जाता है। ये विधियाँ निम्न है-

* बैंक दर (Bank Rate) - भारतीय रिजर्व बैंक जिस ब्याज दर पर व्यावसायिक बैंकों को दीर्घकालीन ऋण उपलब्ध कराता है, बैंक दर कहलाता है।


•  Effects
 बैंक दर में परिवर्तन का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से व्यावसायिक बैंकों द्वारा आवंटित ऋणों की ब्याज दर पर पड़ता है। इसके अन्तर्गत रिजर्व बैंक के पास अनुसूचित बैंकों की कुल वैधानिक जमाराशि (Statutary deposits) के एक निश्चित प्रतिशत के बराबर उनके मूल कोटे (Basic quota) निर्धारित कर दिया गया। निर्धारित कोटे की सीमा तक रिजर्व बैंक से बैंक दर पर ऋण लिया जा सकता है। इससे अधिक ऋण लेने पर बैंक दर के अतिरिक्त व्याज को दण्ड दर (Penal rate) देनी पड़ती है।

बैंक दर में वृद्धि या कमी व्यावसायिक बैंक द्वारा
आवंटित ऋणों पर ब्याज दर कम या ज्यादा करने के लिए होता है।

नोट :
बेस रेट वह दर है जिसके नीचे अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक किसी भी तरह का ऋण नहीं दे सकते है। यह पूर्व प्रचलित बैंचमार्क प्राइम लैडिंग रेट (BPLR) के स्थान पर अपनाया गया है (वर्ष 2010 से)।

नकद आरक्षण अनुपात (Cash Reserve Ratio)
 : प्रत्येक व्यापारिक बैंक अपनी कुछ जमाओं का एक निर्धारित प्रतिशत रिजर्व बैंक के पास सदैव नकद रूप में रखता है जिसे नकद आरक्षण अनुपात (CRR) कहते है। रिजर्व बैंक इस नकद पर कोई ब्याज बैंक को नहीं देता है। जब रिजर्व बैंक साख मुद्रा में वृद्धि करना चाहता है, तो वह इस अनुपात में कमी कर देता है और यदि वह साख मुद्रा में कमी करना चाहता है, तो वह इस अनुपात में वृद्धि कर देता है।

• वैधानिक तरलता अनुपात (Statutory Liquidity Ratio) 
: प्रत्येक बैंक को कुल जमाराशि के एक निश्चित प्रतिशत को अपने पास नकद रूप में या अन्य तरल परिसम्पत्तियों के रूप में (सोना, अनुमोदित प्रतिभूतियाँ- सरकारी प्रतिभूतियाँ) रखना पड़ता है जिसे वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) कहा जाता है। यदि रिजर्व साख नियन्त्रण (Control of Credit) बैंक को साख मुद्रा का प्रसार करना होता है, तो इस अनुपात को कम कर दिया जाता है, ताकि बैंकों के पास तरल कोषों में वृद्धि हो सके। यदि साख का संकुचन करना होता है, तो इस अनुपात को बढ़ा दिया जाता है, ताकि बैंकों के पास तरल कोष कम उपलब्ध हो।

रेपो दर (Repo Rate) : रेपो दर वह दर है जिस पर रिजर्व बैंक, बैंकों को अल्पकालीन ऋण देकर अर्थव्यवस्था में तरलता की अतिरिक्त मात्रा जारी करता है।

* इसका प्रभाव व्यावसायिक बैंकों द्वारा आवंटित ऋणों पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ता है। इसका प्रयोग तात्कालिक मुद्रा के प्रसार में वृद्धि या कमी के लिए किया जाता है। मंदी के दौरान रेपो दर में कटौती की जाती है ताकि मुद्रा के प्रसार में वृद्धि हो। ज्यों-ज्यों मंदी का दौर खत्म होता है, रेपो दर से वृद्धि की जाती है ताकि तात्कालिक मुद्रा का प्रसार कम हो।

रिवर्स रेपो दर (Reverse Repo Rate)
 : यह रेपो दर से उल्टी होती है। बैंकों के पास दिनभर के कामकाज के बाद कई बार एक बड़ी रकम शेष बच जाती है। बैंक वह रकम अपने पास रखने के बजाए रिजर्व बैंक में रख सकते हैं, जिस पर उन्हें रिजर्व बैक से ब्याज भी मिलता है। जिस दर पर यह ब्याज मिलता है, उसे रिवर्स रेपो दर कहते हैं।

• मार्जिनल स्टैण्डिंग फैसिलिटी (MSF)
 वह दर जिस पर बैंक, रिजर्व बैंक से प्रतिभूतियों के एवज में ऋण लेते हैं। इसके अंतर्गत बैंक ओवरनाइट आधार पर (एक दिन के लिए) अपने अतिरिक्त वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) के विरुद्ध पूंजी लेते हैं। इस दर को भारतीय बैंकिंग प्रणाली में 9 मई, 2011 से लागू किया गया।

नोट
खुले बाजार की क्रियाएँ (Open Market Operations) खुले बाजार की क्रियाओं से आशय केन्द्रीय बैंक द्वारा बाजार में प्रतिभूतियों, ऋण-पत्रों तथा बिलों के क्रय-विक्रय से है। केन्द्रीय बैंक द्वारा प्रतिभूतियों को बेचने से बाजार में मुद्रा की मात्रा कम हो जाती है, जिससे साख का सन्तुलन होता है और प्रतिभूतियों के खरीदे जाने से बाजार में मुद्रा की मात्रा बढ़ती है तथा साख का विस्तार हो जाता है।

तरलता की दृष्टि से प्रतिभूतियों एवं ऋणों का अनुक्रम है-नकद, एडहॉक ट्रेजरी बिल्स (इन्हें बंद किया जा चुका है). ट्रेजरी बिल्स तथा कॉल मनी ।

गुणात्मक (Qualitative) विधियाँ
• इन विधियों द्वारा साख के प्रवाह को आर्थिक क्रिया के निर्दिष्ट या विशेष क्षेत्र की ओर मोड़ते या सीमित करते हैं। गुणात्मक विधियों में कुछ सीमा तक परिमाणात्मक विधियों का भी अंश रहता है। ये विधियों निम्न है

1. सीमांत आवश्यकता (Margin Requirement) : सीमांत आवश्यकता से अभिप्राय, बैंक द्वारा किसी वस्तु की जमानत पर दिए गए ऋण तथा जमानत वाली वस्तु के वर्तमान मूल्य के अंतर से है।

मान लीजिए किसी व्यक्ति ने ₹ 100 मूल्य का माल बैंक के पास जमानत के रूप में रखा है और बैंक उसे ₹80 का ऋण देता है। इस स्थिति मे सीमांत आवश्यकता 20 प्रतिशत होगी। यदि अर्थव्यवस्था की किसी विशेष व्यावसायिक क्रिया के लिए साख के प्रवाह को सीमित करना है तो उस क्रिया के लिए सीमांत आवश्यकता को बढ़ा दिया जाएगा। इसके विपरीत यदि साख का विस्तार किया जाना है तो सीमांत आवश्यकता को कम कर दिया जाता है।

2. साख की राशनिंग (Rationing of Credit) : 
साख की राशनिंग से अभिप्राय विभिन्न व्यावसायिक क्रियाओं के लिए साख की मात्रा का कोटा निर्धारित करना है।
को राशन तब की जाती है ज अव्यवस्था में विशेष रूप से सट्टे की क्रियाओं के लिए दिए जाने वाले ऋणों पर रोक लगानी होती है। केंद्रीय बैंक विभिन्न क्रियाओं के लिए साख का कोटा निर्धारित कर देता है। ऋण देते समय वाणिज्यिक बैंक कोटे की सीमा से अधिक ऋण नहीं दे सकते।

3. प्रत्यक्ष कार्यवाही (Direct Action): 
केंद्रीय बैंक को उन बैंकों के विरुद्ध प्रत्यक्ष कार्यवाही करनी पड़ती है जो उसकी साख नीति का पालन नहीं करते। प्रत्यक्ष कार्यवाही के अंतर्गत ऐसे वाणिज्यिक बैंकों की देश की बैंकिंग प्रणाली के सदस्यों के रूप में मान्यता को रद्द कर दिया जाता है।

4. नैतिक प्रभाव (Moral Suasion) : 
कभी-कभी केंद्रीय बैंक सदस्य बैंकों पर नैतिक प्रभाव डालकर उन्हें साख नियंत्रण के लिए अपनाई गई नीति के अनुसार काम करने के लिए सहमत कर लेता है। केंद्रीय बैंक का लगभग सभी वाणिज्यिक बैंकों पर नैतिक प्रभाव होता है। अतः सामान्यतः ये बैंक केंद्रीय बैंक द्वारा साख के विस्तार या संकुचन करने की सलाह को मान लेते है। मुद्रास्फीति के समय बैंकों को साख के प्रवाह को सीमित करने तथा अवस्फीति के दौरान उदारता से ऋण देने का केंद्रीय बैंक परामर्श देता है।


नोट :

• नैतिक प्रभाव में मनाने तथा दबाव डालने का मिश्रण पाया जाता है। केंद्रीय बैंक वाणिज्यिक बैंकों को अपनी मौद्रिक नीति का पालन करने के लिए मनाता है। अन्यथा उन पर दबाव डालकर अपनी नीति को मनवाता है। यदि यह असफल होता है तो केंद्रीय बैंक प्रत्यक्ष कार्यवाही कर सकता है जिसमें वाणिज्यिक बैंकों की मान्यता रद्द (Derecognition) शामिल है। मौद्रिक नीति का एक उपकरण होने के कारण,

नैतिक प्रभाव एक मात्रात्मक उपाय भी है और एक गुणात्मक उपाय भी यद्यपि इसे गुणात्मक उपाय की श्रेणी में रखा जाता है।

चयनात्मक साख नियंत्रण (Selective Credit Control)
 केंद्रीय बैंक की अर्थव्यवस्था के विशेष क्षेत्रों के पक्ष या विपक्ष में एक भेदमूलक नीति है। विशेष क्षेत्रों (प्राथमिक क्षेत्र-कृषि) में साख के प्रवाह को प्रोत्साहित किया जाता है ताकि उनमें आर्थिक गतिविधियों के स्तर को बढ़ाया जा सके। यह चयनात्मक साख नियंत्रण (SCCs) का धनात्मक प्रयोग (Positive Application) है।

• किन्ही विशेष क्षेत्र (गैर-प्राथमिक क्षेत्रों) को दी जाने वाली साथ की उपलब्धता पर केंद्रीय बैंक प्रतिबंध भी लगा सकता है। साधारणतः मुद्रास्फीति की अवधि में सट्टे की कार्यवाहियों (जैसे अनाज का स्टॉक करना) को निरुत्साहित करने के लिए साथ की उपलब्धता पर रोक लगाई जाती है। 

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